पढ़ोगे-लिखोगे फिर भी बेरोज़गार!

(आज के शिक्षा और व्यवस्था पर एक कटु सत्य)

कहा गया था – पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब,
मगर अब पढ़-लिखकर बनते हैं हम सिर्फ सवालों के जवाब।
अब शिक्षा नहीं बनाती उज्ज्वल भविष्य का द्वार,
बल्कि लाती है बेरोज़गारी, संघर्ष, और लाठियों की मार।

पढ़ाई अब न सम्मान दिलाती है, न अधिकार,
बस सड़कों पर ले आती है – हक़ की भीख मांगने बारंबार।
पढ़ाई अब क्रांति की चिंगारी है,
जो जागरूक बनाती है, पर बदले में दमनकारी है।

कहा जाता है – पढ़ो, देश बनाएगा प्रगति,
मगर सच्चाई है – अब पढ़े हुए युवाओं की ही छीनी जाती है गति।
नौकरियाँ नहीं, लाठियाँ मिलती हैं डिग्री के बदले,
सिस्टम कहता है – चुप रहो, नहीं तो जेल में बंद कर देंगे।

जो अनपढ़ हैं, वो मिल जाते हैं ईंटों की भट्टी में काम पर,
और जो पढ़े-लिखे हैं, वो बैठते हैं परीक्षा के परिणाम पर बरसों तक इंतजार में।
शिक्षा अब हिम्मत देती है सवाल पूछने की,
और सिस्टम डरता है – इसलिए कुचल देता है आवाज़ उठाने की।

तो अब तुम सोचो – पढ़ना क्या वाकई उजाला है?
या बस एक ऐसा रास्ता है, जो अंधेरे में ले जाता है?
शिक्षा अब सिर झुकाना नहीं सिखाती,
बल्कि अधिकारों की लड़ाई में खड़ा होना सिखाती।

लेकिन फिर भी… हाँ, फिर भी पढ़ना ज़रूरी है,
क्योंकि जागरूकता ही पहला क़दम है बदलाव की शुरुआत के लिए।
हम लड़ेंगे, झुकेंगे नहीं —
हम पढ़ेंगे, और इस व्यवस्था को भी पढ़ना सिखाएंगे।

Mukesh Kumar
Mukesh Kumar