“हम ही तो सपना हैं”
हम ही तो सपना हैं, अपने और अपनों का,
हम ही तो सहारा हैं माँ-बाबूजी की आँखों का।
किया क्या खता हमने, बस हक़ की बात कही,
सालों की मेहनत पर क्यों ये आफ़त पड़ी?
कुछ भ्रष्टाचारी बैठे हैं सत्ता की कुर्सी पर,
हमारे भविष्य से खेलते हैं खुले मंच पर।
ना जाना था अपनों के देश में ही अपनों से लड़ना होगा,
आवाज़ और अधिकार के लिए संविधान वालों से ही झगड़ना होगा।
कैसा होगा ये देश महान?
जब व्यवस्था ही हो ईमान से अंजान।
हम लड़े हक़ के लिए तो बदले में दमन हुआ,
सिस्टम ने ही हमारे साथ गंदा व्यवहार किया।
कब तक ये अन्याय सहेगा छात्र समाज?
कब तक बिकेगा भविष्य किसी लालच की नाजायज़ आवाज़?
किससे मांगें अब हम इंसाफ़ का अधिकार?
जब न्याय का तराज़ू भी हो गया बेईमानों के हवाले बारंबार।
लेकिन मत थमो, मत झुको,
हर आहट में क्रांति की गूंज भरो।
हम बदलेंगे कल को, ये प्रण है हमारा,
हम ही हैं रौशनी, हम ही हैं सितारा।
